Pithal Aur Pathal - Story of A Warrior and A Father

Pithal aur Pathal a very Inspiring and Motivational Poem by Kanahiya Lal Sethia.This Poem tells us The Story of A Warrior who is a father also..Who lost his kingdom and living in jungle..How his heart melts when his son have no food to eat...This is the story of Maharana Pratap - The Great Indian Warrior

To feel the Flavor of Love between a Father & his child and to know the depth of this relationship please read it....read it and feel it...



अरै घास री रोटी ही, जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमर्यो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो, मेवाड़ी मान बचावण नै,
हूं पाछ नहीं राखी रण में, बैर्यां री खात खिडावण में,
जद याद करूँ हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूँ, जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँ, भूलूं हिंदवाणी चोटी नै

मैं’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
ऐ हाय जका करता पगल्या, फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया, हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिख स्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,


मैं झुकूं कियां ? है आण मनैं कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां ? हूं सेस लपट आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूँ दिल्लीस तनैं समराट् सनेषो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो’ सपनूं सो सांचो,
पण नैण कर्यो बिसवास नहीं जद बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो, कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो, आ सोच हुयो समराट् विकळ,


बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै, रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो, राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैर्यां रै मन रो कांटो हो बीकाणूँ पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो, धावां पर लूण लगावण नै,


पीथळ नै तुरत बुलायो हो, राणा री हार बंचावण नै,
म्है बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ?
मर डूब चळू भर पाणी में, बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो, तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपती खून रगां में है ?
जंद पीथळ कागद ले देखी, राणा री सागी सैनाणी,


नीचै स्यूं धरती खसक गई, आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाळ संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं, राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं, आ बात सही बोल्यो अकबर,


म्हे आज सुणी है नाहरियो, स्याळां रै सागै सोवै लो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो, बादळ री ओटां खोवैलो;
म्हे आज सुणी है चातगड़ो, धरती रो पाणी पीवै लो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो, कूकर री जूणां जीवै लो
म्हे आज सुणी है थकां खसम, अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में, तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ नै राणा लिख भेज्यो आ बात कठै तक गिणां सही ?


पीथळ रा आखर पढ़तां ही, राणा री आँख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूँ कायर हूँ, नाहर री एक दकाल हुई,
हूँ भूख मरूं हूँ प्यास मरूं, मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूँ घोर उजाड़ां में भटकूं, पण मन में मां री याद रवै,
हूँ रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,


पीथळ के खिमता बादल री, जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै, बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी, चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी, हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तलवार थकां, कुण रांड़ कवै है रजपूती ?
म्यानां रै बदळै बैर्यां री, छात्याँ में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ी, लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूँ अथक लडूंला अकबर स्यूँ, उजड्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेष गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।

                                      



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